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कहीं गेहूं का आटा ही तो नहीं है हमारी बीमारियों की वजह ? जानिए कारण..

पुराने समय में हमारे बुजुर्ग मोटे अनाजों का प्रयोग करके बिल्कुल स्वस्थ रहा करते थे और उनकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक हुआ करती थी। लेकिन अब का समय ऐसा है कि व्यक्ति की औसत आयु में काफी तेजी से गिरावट आ रही है और व्यक्ति तमाम बीमारियों के मकड़जाल में फंसता ही जा रहा है। आज के समय में व्यक्ति के कमाई का एक बड़ा भाग दवाओं में ही चला जा रहा है।

इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि वर्तमान समय में लगभग हर घर में रोटी इत्यादि के लिए गेहूं के आटे को ही प्रयोग लाया जा रहा है। गेहूं जिसमें गुलेटिन नामक तत्व पाया जाता है। जो हमारी आंतों में चिपक जाता है। जिसे हमारा शरीर आसानी से पचा भी नहीं पाता। पाचन ठीक से न होने की वजह से हमें पेट सम्बन्धी तमाम समस्याएं होने लगती है। पहले के लोग कोदो, सावा, ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि मोटे अनाजों का प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करते थे। गेहूं के आटे का प्रयोग कभी-कभार ही मेहमानों के आगमन पर ही हुआ करता था। गेहूं का आटा भी चोकरयुक्त ही प्रयोग में लाया जाता था। जो उतना नुकसानदेह भी नहीं होता था। जिससे वे बिल्कुल स्वस्थ व बीमारियों से कोसों दूर भी रहते थे।

लेकिन आज का हाल यह है कि लोग गेहूं को एकदम बारीक पीसवाकर प्रयोग में लाते हैं। आज तो बाजारों में भी गेहूं के आटे हर जगह उपलब्ध हैं जो एकदम मैदे समान बारीक होता है। इस आटें में पाया जाने वाला गुलेटिन हमारी आतों में चिपक कर कई तरह की परेषानियां बढ़ा रहा है। बाजारों में आसानी से उपलब्ध होने की वजह से अब धीरे-धीरे लोग गेहूं को चक्की में पिसाने से भी दूर भाग रहे हैं और बाजार के पैकेटयुक्त आटे का प्रयोग तेजी से कर रहे हैं। लेकिन आपको शायद अंदाजा नहीं होगा कि वो कितना खतरनाक है। इसी के प्रयोग से आज हर घर में बीपी, शुगर के मरीज देखने को मिल रहे हैं। कम उम्र के बच्चे भी इन सभी रोगों के गिरफ्त में तेजी से आ रहे हैं। लगभग सभी के घरों में रोटी शायद ही किसी दिन न बनती हो और हम पैकेटयुक्त या इतने बारीक पीसे गेहूं के आटे का प्रयोग कर खुद बीमारियों को निमंत्रण दे रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते ही होंगे कि सामान्य रूप से पीसा हुआ आटा मात्र 10-15 दिनों तक ही उपयोग लायक होता है। इसलिए पैकेटयुक्त आटे को खराब होने से बचाने के लिए उसमें कई तरह के केमिकल का प्रयोग किया जाता है जो सीधीे तरीके से हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है। पैकेटयुक्त आटे की शुद्धता की भी कोई गारंटी भी नहीं होती।

अब सवाल यह आता है कि क्या किया जाय ?

जैसा कि पुराने समय में लोग मोटे अनाजों का प्रयोग किया करते थे। अब उसी को फिर से शुरू करने की आवष्यता है। अचानक से हम गेहूं के आटे को छोड़ दे ऐसा भी सम्भव नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे करके हम इसे कर सकते हैं। पहले तो हमें ये ध्यान देना है कि पैकेटयुक्त आटे का प्रयोग पूर्ण रूप से बन्द कर देना है। इसके बजाय हमें गेहूं को चक्की में पिसवाना है लेकिन ध्यान रहें ज्यादा बारीक न पिसा जाय और इसे चालने की जरूरत नहीं है। चोकरयुक्त आटे का ही प्रयोग करें। इसके साथ-साथ इसमें कुछ मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि के आटे को भी उसमें मिश्रित कर दें। अब इस मिश्रित आटे को ही नियमित प्रयोग में लाएं। उसके बाद कुछ दिनों बाद गेहंू की जगह मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि से बने आटे को प्रयोग में लाने का प्रयास करें। जिससे आप भी स्वस्थ रहेंगे और आपका परिवार भी।

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